बिहार के लोक देवता बाबा विशु राउत: दूध की नदी, पचरासी मंदिर और राजकीय मेले का ऐतिहासिक महत्व
सारांश
बाबा विशु राउत कौन थे? बिहार की लोक परंपरा में बाबा विशु राउत एक पूजनीय लोक देवता माने जाते हैं। इनका जन्म 1719 ईस्वी में भागलपुर जिले के सबौर गांव में हुआ था। बाबा विशु राउत के पिता का नाम बालजीत गोप था। 13 वर्ष की किशोर अवस्था में उनका विवाह नवगछि
बाबा विशु राउत कौन थे?
बिहार की लोक परंपरा में बाबा विशु राउत एक पूजनीय लोक देवता माने जाते हैं। इनका जन्म 1719 ईस्वी में भागलपुर जिले के सबौर गांव में हुआ था। बाबा विशु राउत के पिता का नाम बालजीत गोप था। 13 वर्ष की किशोर अवस्था में उनका विवाह नवगछिया के सिमरा गांव की रूपवती से हुआ था।
पारिवारिक जिम्मेदारियां कम उम्र में ही उनके कंधों पर आ गईं। पशुपालन उनकी आजीविका का मुख्य साधन था और इसी काम के चलते वे चारा की तलाश में गंगा पार कर चौसा प्रखंड के लौआलगान जंगल पहुंचे। वहीं पर उन्होंने अपना बथान बसाया, जो आगे चलकर पचरासी स्थल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
पचरासी: लोक आस्था का प्रतीक स्थल
आज वही पचरासी, मधेपुरा जिले का प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां बाबा विशु राउत का भव्य मंदिर स्थापित है। मान्यता है कि बाबा की समाधि इसी स्थान पर बनी है। यहां हर सोमवार और शुक्रवार को श्रद्धालु दुग्धाभिषेक करते हैं। विशेष रूप से सावन और वैशाख महीने में हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर में मत्था टेकने पहुंचते हैं।
यहां स्थापित शिवलिंग और बाबा विशु राउत की प्रतिमा के दर्शन कर लोग अपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति की कामना करते हैं।
90 लाख गायों की अद्भुत कथा
बिहार की लोककथाओं में वर्णित है कि बाबा विशु राउत की मृत्यु के बाद उनकी 90 लाख गायें उनके पार्थिव शरीर के पास आकर अपने स्तनों से दूध बहाने लगीं। इससे वहां दूध की नदी बह निकली थी।
आज भी पचरासी में मौजूद उस स्थान को दूधिया नदी की कथा से जोड़ा जाता है। यहां के बुजुर्ग लोग इस लोककथा को बड़े ही भावपूर्ण ढंग से सुनाते हैं और नई पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।
राजकीय मेले का ऐतिहासिक आयोजन
हर वर्ष 14 अप्रैल से पचरासी मंदिर परिसर और आस-पास के मैदान में चार दिवसीय भव्य मेला लगता है। 2018 में बिहार सरकार ने इस मेले को राजकीय मेला का दर्जा प्रदान किया।
इस मेले में लाखों श्रद्धालु बाबा विशु राउत का दुग्धाभिषेक करने, भजन-कीर्तन सुनने और पशु हाट देखने पहुंचते हैं। यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम, खेल-कूद, ग्रामीण हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजन की दुकानों की भी बहार रहती है।
पर्यटन स्थल का दर्जा पाने की माँग
पचरासी क्षेत्र के ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ता लंबे समय से इस धार्मिक स्थल को बिहार का पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि पर्यटन स्थल का दर्जा मिलने से न सिर्फ इस क्षेत्र का विकास होगा, बल्कि बाबा विशु राउत की ऐतिहासिक विरासत भी देश-दुनिया में पहचानी जाएगी।
अब तक 26 वर्षों से यह मांग लंबित है। हालांकि सरकार द्वारा राजकीय मेला का दर्जा मिलने के बाद उम्मीदें बढ़ी हैं।
लोक संस्कृति और सामाजिक समरसता का प्रतीक
बाबा विशु राउत की गाथा बिहार की ग्रामीण संस्कृति, पशुपालन परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक है। उनकी कथा पशुपालक समाज के संरक्षण, संघर्ष और समर्पण की मिसाल है।
यह स्थल आज भी बिहार की आस्था और लोक परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जो भक्ति, श्रद्धा और सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है।
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