मुसलमानों में कितनी फूट! हिजबुल्लाह के चीफ की मौत से उजागर हुई सच्चाई
सारांश
मुस्लिम समाज में शिया और सुन्नी के बीच का विभाजन सदियों पुराना है। यह दुश्मनी हाल के घटनाक्रमों से और स्पष्ट हो गई है, खासकर हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह की मौत के बाद। शिया और सुन्नी के बीच के मतभेद इतने गहरे हैं कि दोनों समूह एक-दूसरे के प्रति कट
मुस्लिम समाज में शिया और सुन्नी के बीच का विभाजन सदियों पुराना है। यह दुश्मनी हाल के घटनाक्रमों से और स्पष्ट हो गई है, खासकर हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह की मौत के बाद। शिया और सुन्नी के बीच के मतभेद इतने गहरे हैं कि दोनों समूह एक-दूसरे के प्रति कट्टर दुश्मनी रखते हैं। सुन्नी बाहुल्य सीरिया में नसरल्लाह की मौत पर जश्न मनाना और मिठाइयां बांटने जैसी घटनाएं इस गहरे विभाजन का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
शिया और सुन्नी विवाद की जड़ें
शिया और सुन्नी विवाद की शुरुआत इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली और उनके समर्थकों के साथ हुए राजनीतिक मतभेदों से हुई। पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद, इस्लामी खलीफाओं का चुनाव एक गंभीर मुद्दा बन गया। सुन्नी मानते थे कि खलीफा का चुनाव समुदाय के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा होना चाहिए, जबकि शिया मानते थे कि पैगंबर का परिवार और उनकी वंशावली ही इस पद के योग्य है, खासकर हजरत अली और उनके उत्तराधिकारी।
हिजबुल्लाह और हसन नसरल्लाह की भूमिका
हिजबुल्लाह एक शिया आतंकवादी संगठन है, जिसका मुख्य उद्देश्य इज़राइल का विरोध करना और मध्य पूर्व में शिया प्रभुत्व को मजबूत करना रहा है। हसन नसरल्लाह, इस संगठन के प्रमुख नेता, शिया मुस्लिम वर्ल्ड में एक महत्वपूर्ण हस्ती थे। उनके नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने लेबनान और सीरिया में काफी प्रभाव बनाया। उनकी मृत्यु ने शिया समुदाय में शोक का माहौल पैदा किया, लेकिन सुन्नी समुदाय, विशेष रूप से सीरिया के सुन्नी मुस्लिम, इसे एक जीत के रूप में देख रहे हैं।
शिया और सुन्नी के बीच के संघर्ष
शिया और सुन्नी के बीच का संघर्ष सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक भी है। ये दोनों समूह विभिन्न धार्मिक परंपराओं, अनुष्ठानों और विश्वासों का पालन करते हैं, और उनका इतिहास भी कई युद्धों और राजनीतिक संघर्षों से भरा हुआ है। हाल के दशकों में, इस संघर्ष ने इराक, सीरिया, यमन और लेबनान जैसे देशों में हिंसक रूप ले लिया है। सुन्नी बहुल देशों और शिया प्रभुत्व वाले समूहों के बीच मतभेद और संघर्ष लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
नसरल्लाह की मौत पर सुन्नी देशों की प्रतिक्रिया
हसन नसरल्लाह की मौत पर शिया समुदाय में गहरा शोक है, लेकिन इसके विपरीत, सुन्नी बहुल देशों में इस पर उत्सव मनाया गया है। विशेष रूप से सीरिया में, जहां सुन्नी समुदाय ने मस्जिदों में जश्न का ऐलान किया और मिठाइयां बांटीं। यह घटना दर्शाती है कि किस तरह से शिया और सुन्नी के बीच की दुश्मनी लगातार बढ़ रही है और अब वह सिर्फ मध्य पूर्व तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल रही है।
मुसलमानों के बीच विभाजन का वैश्विक प्रभाव
शिया और सुन्नी विवाद न केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित है, बल्कि इसका असर वैश्विक राजनीति और समाज पर भी पड़ता है। इस्लामी देशों में आंतरिक संघर्षों का कारण यही विभाजन है, जो बार-बार हिंसा और युद्ध की स्थिति पैदा करता है। ईरान जैसे शिया-प्रभुत्व वाले देश और सऊदी अरब जैसे सुन्नी-प्रभुत्व वाले देशों के बीच का टकराव भी इसी विभाजन का एक उदाहरण है।
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच लंबे समय से गहरे मतभेद रहे हैं, जो धार्मिक मान्यताओं से लेकर अनुष्ठानों तक विभिन्न पहलुओं में दिखाई देते हैं। इन मतभेदों में सबसे प्रमुख हैं:
1. पैगंबर हज़रत मुहम्मद के उत्तराधिकारी के बारे में मतभेद:
सुन्नी मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर ने अपने चचेरे भाई और दामाद हज़रत अली को इस्लाम का उत्तराधिकारी नहीं बनाया था, बल्कि खलीफा का चुनाव समुदाय द्वारा किया जाना चाहिए। इसके विपरीत, शिया मानते हैं कि हज़रत अली ही इस्लाम के असली और चुने हुए उत्तराधिकारी थे, जिनका नाम पैगंबर ने स्वयं लिया था।
2. नमाज़ पढ़ने का तरीका:
सुन्नी समुदाय दिन में पांच बार अलग-अलग समय पर नमाज़ पढ़ते हैं। शिया मुसलमानों में नमाज़ का समय थोड़ा भिन्न होता है। वे सुबह की नमाज़ अलग पढ़ते हैं, लेकिन दोपहर और तीसरे पहर की नमाज़ एक साथ, और शाम व रात की नमाज़ भी एक साथ पढ़ते हैं।
3. तरावी नमाज़ का अंतर:
रमज़ान के महीने में सुन्नी समुदाय तरावी नामक विशेष नमाज़ ईशा के बाद पढ़ते हैं, जबकि शिया समुदाय इस नमाज़ को नहीं मानता और इसे नहीं पढ़ते।
4. न्यायशास्त्र का विभाजन:
सुन्नी इस्लाम में चार प्रमुख न्यायशास्त्रीय स्कूल या विचारधाराएं हैं, जबकि शिया समुदाय में जाफ़री या इमामी स्कूल प्रमुख है।
5. भौगोलिक वितरण:
सुन्नी मुसलमान दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बहुसंख्यक हैं, जिनमें सीरिया, तुर्की, दक्षिण एशिया, सऊदी अरब, और यमन जैसे देश शामिल हैं। वहीं, शिया मुसलमान मुख्य रूप से ईरान, इराक, लेबनान, बहरीन, और अज़रबैजान में बहुसंख्यक हैं।
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