आज ही के दिन लागू हुई थी मंडल कमीशन की सिफारिशें, जिससे बदल गया आरक्षण का गणित; जाने विस्तार से
सारांश
Mandal Commission Report Story: 1979 की शुरुआत में, तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बी.पी. मंडल को दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। यह निर्णय भारत के सामाजिक-राजनीतिक
Mandal Commission Report Story: 1979 की शुरुआत में, तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बी.पी. मंडल को दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। यह निर्णय भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को बदलने वाला था। लगभग दो वर्षों की मेहनत के बाद, 1980 के अंत में, मंडल ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी। परंतु तब तक देश की राजनीतिक स्थिति बदल चुकी थी। मोरारजी देसाई की जगह इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं। अगले दशक तक, यह महत्वपूर्ण दस्तावेज़ लगभग अनदेखा रहा। इंदिरा गांधी और उनके बाद राजीव गांधी के शासनकाल में इस रिपोर्ट पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अंततः, 1990 में, एक नए युग की शुरुआत हुई। 7 अगस्त को, प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने संसद में एक ऐतिहासिक घोषणा की। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। इस निर्णय के तहत, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया।
क्या था मंडल आयोग की रिपोर्ट में?
मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया - भारत की लगभग आधी आबादी (52%) अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित थी। इस आंकड़े के आधार पर, आयोग ने प्रारंभ में इसी अनुपात में सरकारी सेवाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का विचार रखा। हालांकि, यह प्रस्ताव 1963 के एक महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय के विपरीत था। एम.आर. बालाजी बनाम मैसूर राज्य मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की थी।

चूंकि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए पहले से ही 22.5% आरक्षण था, ओबीसी के लिए शेष 27.5% ही उपलब्ध था। इस कानूनी बाध्यता को ध्यान में रखते हुए, आयोग ने अपनी अंतिम सिफारिशों में ओबीसी वर्ग के लिए 27% आरक्षण का प्रस्ताव रखा। यह सिफारिश न केवल भर्ती, बल्कि पदोन्नति के लिए भी थी। इसके अतिरिक्त, आयोग ने एससी-एसटी की तरह ही ओबीसी उम्मीदवारों को आयु सीमा में छूट देने का सुझाव भी दिया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया कि इन सिफारिशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकार को उचित कानूनी ढांचा तैयार करना होगा।
कितना आसान था मंडल कमीशन की सिफारिश को लागु करना ?
मंडल आयोग ने 31 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं था। उस समय की सरकारें इसकी संवेदनशीलता को समझती थीं। यही कारण था कि मंडल आयोग बनाने वाली मोरारजी देसाई सरकार के गिरने के बाद इसे अलमारी में रख दिया गया। अगले 10 साल तक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारें रहीं। पर उन्होंने इस रिपोर्ट पर कोई कदम नहीं उठाया। 1989 के चुनाव से पहले वीपी सिंह ने जनता दल नाम से अपनी पार्टी बनाई।
उन्होंने अपने चुनावी वादों में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात कही। चुनाव में 197 सीटें जीतने के बावजूद राजीव गांधी ने सरकार बनाने से मना कर दिया। तब 143 सीटें जीतने वाली जनता दल ने भाजपा और वाम दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने 7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने की घोषणा की।
सरकार गिरने की बड़ी वजह बनी मंडल कमीशन
वीपी सिंह ने जब मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कीं, तो उनकी सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा। दिल्ली में ओबीसी कोटे के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली। वह बुरी तरह जल गया, लेकिन बच गया। इसके बाद कई अन्य शहरों में भी युवाओं ने ऐसा ही किया। वीपी सिंह की सरकार मुश्किल में थी, पर वे अपने फैसले पर अड़े रहे। दक्षिण भारत में हालात शांत रहे। वहां पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए पहले से ही लंबा संघर्ष चल रहा था। इस बीच, सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाजपा ने मुद्दे को मंडल से हटाकर राम मंदिर की ओर मोड़ने की कोशिश की। लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू कर दी। लेकिन जल्द ही भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
भारतीय राजनीति के परिदृश्य को आमूल-चूल परिवर्तित कर दिया
वी.पी. सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने मंडल आयोग की अनुशंसाओं को स्वीकार कर लिया था, परंतु इसके क्रियान्वयन को इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में न्यायिक समीक्षा का सामना करना पड़ा। उच्चतम न्यायालय ने इस विषय पर विचार किया और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27% आरक्षण को वैधानिक ठहराया। हालांकि, न्यायालय ने कुछ प्रतिबंध भी लगाए:
1. आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित की गई। 2. पदोन्नति में इस आरक्षण को लागू करने पर रोक लगा दी गई। 3. समृद्ध वर्गों को आरक्षण से बाहर रखने के लिए 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा प्रस्तुत की गई।
मंडल आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन ने भारतीय राजनीति के परिदृश्य को आमूल-चूल परिवर्तित कर दिया। आज भी, चुनावी प्रक्रिया में आरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है और इस पर व्यापक चर्चा होती रहती है।
मंडल आयोग से पूर्व भी हुआ था पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन
मंडल आयोग से पूर्व, 1953 में पिछड़े वर्ग के लिए एक आयोग की स्थापना की गई थी। जनवरी 1953 में, सरकार ने समाज सुधारक काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग स्थापित किया था। मार्च 1955 में, आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें 2399 पिछड़े समुदायों की सूची तैयार की गई थी। इनमें से, 837 को सबसे पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया गया था। हालांकि, यह रिपोर्ट कभी लागू नहीं हो पाई।
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