टचस्क्रीन तकनीक का इतिहास और प्रकार: जानिए कौन-सी स्क्रीन आपके टच को सबसे तेजी से पहचानती है!
सारांश
टचस्क्रीन तकनीक का इतिहास टचस्क्रीन का सफर 1965 में शुरू हुआ, जब ब्रिटेन के वैज्ञानिक ई.ए. जॉनसन ने पहला Capacitive Touchscreen तैयार किया। इसके बाद 1970 के दशक में डॉ. सैमुअल हर्स्ट ने Resistive Touchscreen विकसित की। 1980 और 1990 के दशकों में टचस
टचस्क्रीन तकनीक का इतिहास
टचस्क्रीन का सफर 1965 में शुरू हुआ, जब ब्रिटेन के वैज्ञानिक ई.ए. जॉनसन ने पहला Capacitive Touchscreen तैयार किया। इसके बाद 1970 के दशक में डॉ. सैमुअल हर्स्ट ने Resistive Touchscreen विकसित की।
1980 और 1990 के दशकों में टचस्क्रीन तकनीक ने तेजी पकड़ी। एटीएम, पब्लिक कियोस्क और कंप्यूटर सिस्टम में इसका इस्तेमाल होने लगा। फिर 2007 में एप्पल के iPhone ने Capacitive Multi-Touchscreen को आम आदमी तक पहुंचा दिया। इसके बाद स्मार्टफोन और टैबलेट के लिए यह स्टैंडर्ड टेक्नोलॉजी बन गई।
टचस्क्रीन के प्रकार और उनका काम करने का तरीका
आज बाज़ार में टचस्क्रीन की कई तकनीकें मौजूद हैं। हर एक तकनीक का अपना अनूठा तरीका होता है, जिससे यह टच को पहचानती है। आइए, विस्तार से जानें।
Capacitive Touchscreen
कैसे काम करती है:
इस तकनीक में स्क्रीन के ऊपर एक इलेक्ट्रिक चार्ज वाली ग्लास लेयर होती है। जब उंगली स्क्रीन को छूती है, तो इलेक्ट्रिक फील्ड में बदलाव होता है और डिवाइस उस लोकेशन को पहचान लेती है।
फायदे:
- मल्टी-टच सपोर्ट (दो या ज्यादा उंगलियों से एक साथ टच)
- स्मूद और तेज़ रिस्पॉन्स
- हाई ब्राइटनेस और क्लैरिटी
कमियां:
- दस्ताने पहनकर या नॉन-कंडक्टिव चीज़ों से काम नहीं करता
- थोड़ा महंगा
कहां इस्तेमाल होता है:
स्मार्टफोन, टैबलेट, हाई-एंड लैपटॉप
Resistive Touchscreen
कैसे काम करती है:
इसमें दो पतली परतें होती हैं — एक कंडक्टिव और एक रेसिस्टिव। जब कोई चीज़ स्क्रीन को दबाती है, तो दोनों लेयर संपर्क में आ जाती हैं और करंट फ्लो से टच पॉइंट तय होता है।
फायदे:
- उंगली, स्टाइलस, दस्ताने या किसी भी नुकीली चीज़ से ऑपरेट
- सस्ता और टिकाऊ
कमियां:
- कम ब्राइटनेस और कलर क्वालिटी
- स्लो रिस्पॉन्स
- मल्टी-टच सपोर्ट नहीं
कहां इस्तेमाल होता है:
पुराने एटीएम, फीचर फोन, पब्लिक कियोस्क
Infrared Touchscreen
कैसे काम करती है:
स्क्रीन के किनारों पर इंफ्रारेड एलईडी और सेंसर्स लगे होते हैं, जो अदृश्य लाइट बीम छोड़ते हैं। जब उंगली इन लाइट बीम को काटती है, तो डिवाइस उस पॉइंट को डिटेक्ट करती है।
फायदे:
- हाई ड्यूरिबिलिटी
- दस्ताने या किसी भी चीज़ से ऑपरेट
- ब्राइटनेस या कलर में कोई फर्क नहीं
कमियां:
- धूल, धूप या बाहर के वातावरण में परफॉर्मेंस कम
- सेटअप कॉस्ट ज्यादा
कहां इस्तेमाल होता है:
इंटरएक्टिव डिस्प्ले, म्यूज़ियम कियोस्क, फूड काउंटर स्क्रीन
Optical Touchscreen
कैसे काम करती है:
स्क्रीन के चारों कोनों पर इमेज सेंसर्स लगे होते हैं, जो स्क्रीन की सतह पर हल्की लाइट छोड़ते हैं। जब कोई टच होता है, तो लाइट का रिफ्लेक्शन बदलता है और सेंसर्स उस पॉइंट को डिटेक्ट कर लेते हैं।
फायदे:
- बड़ी स्क्रीन पर भी सटीक रिस्पॉन्स
- दस्ताने और किसी भी चीज़ से टच
- हाई रेज़ोल्यूशन डिस्प्ले सपोर्ट
कमियां:
- कॉम्प्लेक्स सेटअप
- महंगी तकनीक
कहां इस्तेमाल होता है:
बड़ी इंटरएक्टिव स्क्रीन, शॉपिंग मॉल, कॉन्फ्रेंस रूम
कौन-सी तकनीक आपके लिए बेस्ट?
- स्मार्टफोन और टैबलेट: Capacitive
- पब्लिक कियोस्क या एटीएम: Resistive
- इंटरएक्टिव डिस्प्ले: Infrared या Optical
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औंकार नाथ (बिट्टू)
औंकार नाथ, एक कुशल तकनीकी विद्यार्थी हैं, जिन्होंने आईटीआई की पढ़ाई पूरी कर ली है और वर्तमान में पॉलीटेक्निक में अध्ययनरत हैं। तकनीकी विषयों में गहरी रुचि के साथ-साथ लेखन के क्षेत्र में भी इनकी सक्रिय भागीदारी रही है। विगत एक वर्ष से औंकार नाथ हमारे साथ जुड़े हुए हैं और इस अवधि में इन्होंने तकनीकी लेखों एवं जानकारी के माध्यम से अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
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