अपमान के बदले जीत लिए 39 मेडल, छूट गयी थी नौकरी तो 42 की उम्र में खेल में की वापसी
सारांश
महादेव, जिनकी उम्र 50 साल है, आज देश के लिए 39 मेडल जीत चुके हैं। जब आप उन्हें देखेंगे, तो शायद विश्वास ही न हो कि ये वही इंसान हैं, जिन्होंने देश-विदेश में तिरंगे की शान बढ़ाई है। बीते जुलाई में, सिंगापुर में मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के दौरान, म
महादेव, जिनकी उम्र 50 साल है, आज देश के लिए 39 मेडल जीत चुके हैं। जब आप उन्हें देखेंगे, तो शायद विश्वास ही न हो कि ये वही इंसान हैं, जिन्होंने देश-विदेश में तिरंगे की शान बढ़ाई है। बीते जुलाई में, सिंगापुर में मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के दौरान, महादेव ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड और ट्रिपल जम्प में सिल्वर मेडल जीतकर भारत का नाम रोशन किया।
महादेव की कहानी बस यहीं तक नहीं है। 8 साल बाद उन्होंने जेवलिन थ्रो में शानदार वापसी की, जिसके पीछे एक खास वजह थी। बात तब की है, जब भदोही के जिलाधिकारी खिलाड़ियों को मेडल पहना कर सम्मानित कर रहे थे। महादेव भी उस समारोह में पहुंचे, लेकिन उनकी वेषभूषा – धोती और कुर्ता – देखकर जिलाधिकारी ने उन्हें हाथ में ही मेडल थमा दिया। शायद जिलाधिकारी को लगा कि महादेव अपने बेटे का मेडल लेने आए हैं, जबकि असली मेडल विजेता महादेव ही थे। यह अपमान महादेव के दिल में गहरे उतर गया और उन्होंने उसी पल तय कर लिया कि वे फिर से मैदान में वापसी करेंगे और देश के लिए मेडल जीतकर दिखाएंगे।
महादेव ने इस अपमान को अपनी ताकत बना लिया और न केवल एक, बल्कि दो मेडल जीतकर सभी को चौंका दिया। अब वह अक्टूबर में इंडोनेशिया में होने वाले मास्टर एशियन गेम्स की तैयारी कर रहे हैं।
महादेव अब तक सीनियर इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में 16 गोल्ड, 16 सिल्वर, और 7 ब्रॉन्ज मेडल जीत चुके हैं। 2013 से लेकर 2017 तक, उन्होंने श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, और मलेशिया जैसे देशों में मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप में भाग लिया है। नेशनल लेवल पर भी उन्होंने 8 गोल्ड, 6 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल जीते हैं।
महादेव कभी सीआरपीएफ के जवान भी रह चुके हैं। उन्होंने 1985 में सीआरपीएफ जॉइन की थी, लेकिन 1990 में पिता की बिगड़ती सेहत के चलते नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद उन्होंने 42 साल की उम्र में फिर से खेल में वापसी की।
आज महादेव खेती कर अपना गुजारा करते हैं और एक छप्पर के मकान में रहते हैं। उन्हें मेडल तो कई मिले, पर धनराशि नहीं, इसलिए उन्हें खेती करके ही अपने खर्चे चलाने पड़ते हैं। जुलाई में सिंगापुर में आयोजित इंटरनेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आर्थिक सहायता की गुहार लगाई थी, परंतु उन्हें कोई मदद नहीं मिली। आखिरकार आम लोगों के सहयोग से वे सिंगापुर पहुँच सके और वहाँ से मेडल जीतकर लौटे।
महादेव कहते हैं, "लोगों को मेरे खेल में दिलचस्पी थी, इसलिए उन्होंने मेरी मदद की।" सिंगापुर जाने के लिए लोगों के सहयोग के अलावा, उनके क्षेत्र के डीएम राजेंद्र सिंह ने 25,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी थी और इंस्पेक्टर राजेश यश ने 12,500 रुपये की आर्थिक सहायता दी थी। कुल मिलाकर, उन्हें 60,000 रुपये की सहायता मिली, लेकिन सरकार से कोई मदद नहीं मिली।
महादेव के पास एक ही जोड़ी जूते हैं, जिन्हें वे सिर्फ खास मौकों पर ही पहनते हैं। खेती के अलावा, वे अपनी गायों की देखभाल भी करते हैं।
महादेव की कहानी हमें बताती है कि असली ताकत मेहनत, लगन, और अपने सपनों को पूरा करने के जुनून में होती है। वह एक मिसाल हैं, जो साबित करते हैं कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इंसान ठान ले, तो वह किसी भी मुश्किल को पार कर सकता है।
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